लोकतांत्रिक व्यवस्था से राजशाही चलाई जा रही है : MP Police

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लोकतांत्रिक व्यवस्था से राजशाही चलाई जा रही है : MP Police
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लोकतांत्रिक व्यवस्था से राजशाही चलाई जा रही है


रतलाम@हमारे अधिकार न्यूज, इंदौर में पदस्थ जीआरपी के पुलिसकर्मी द्वारा घटित की गई है यह घटना यूं तो व्यक्ति विशेष की है लेकिन जब इसमें विभाग अपने पुलिसकर्मी को बचाने के लिए स्वार्थी हो जाए तो सवालिया निशान पैदा होता है जी हां कुछ ऐसा ही हाल हुआ है रतलाम के जावरा में, एक पुलिसकर्मी जो की इंदौर जीआरपी में हेड कांस्टेबल के पद पर नियुक्त है जिसका कुछ समय पहले जावरा आना होता है वहां उसके द्वारा एक आम नागरिक की तरह ही एक घटना घटित होती है जिसमें वहां SC,ST  के अंतर्गत आने वाले लोग जिसमें एक महिला है एक नाबालिक बच्चा है और एक आदमी है के साथ मारपीट करता दिखाई दिया साथ ही साथ लोगों का यह भी आरोप है कि वहां के ऑटो ड्राइवरों के साथ भी उसके द्वारा अभद्र व्यवहार किया गया जी का विडियो वायरल हुआ इस दृष्टि से यह देखना कि पुलिसकर्मी पद के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति द्वारा इस तरह की घटना को अंजाम दिया जाना जो कि अपने कर्तव्यों को और कानून को पूरी तरह से समझता है उस व्यक्ति द्वारा जब कोई अपराध कारित किया जाता है तब पुलिस अधीक्षक को निष्पक्ष होकर घटना के आधार पर प्रकरण को पंजीबद्ध करवाना चाहिए यह सामान्यसा नियम है लेकिन यह नियम की धजिया तब उड़ जाती है जब पुलिस अधीक्षक को वायरल वीडियो का भी पता चल जाए और वायरल वीडियो में घटित घटनाओं का भी पता चल जाए जो की अपने आप में प्रथम दृष्टया साक्ष है बावजूद उसके पुलिस द्वारा 294, 323, 506 का मुकदमा दर्ज किया जाता है इसमें प्रावधान है कि थाने से ही 41A के नोटिस के आधार पर व्यक्ति को छोड़ा जा सकता है अब सवाल यह है कि जब पुलिस अधीक्षक रतलाम को वीडियो का संपूर्ण ज्ञान है तो ज्ञान का उपयोग करके स्वातः पुलिस अधीक्षक द्वारा थाना प्रभारी को यह अवगत क्यों नहीं कराया गया कि इसके अंतर्गत जेजे एक्ट की भी धारा लगनी चाहिए इसके अंतर्गत SC ST act की भी धार लगानी चाहिए आखिर ऐसा क्या कारण था कि उन दोनों अधिनियमों का उल्लेख थाना प्रभारी ने F.I.R में नहीं किया इस आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा की पुलिस विभाग अपने ही पुलिस कर्मी को बचाने की पूरी कोशिश कर रहा है या फिर जिले का अधिकारी ही निष्पक्ष नहीं है जब बात जनता की हो तो चाहे सीआरपीसी की धारा 107/151  ही क्यों न हो जो की प्रीवेंटिव एक्शन के लिए बनाई गई है जब कभी कोई अपराध होने का अंदेशा भर होता है तब यह धारा का प्रयोग किया जाता है जिसमे कोई अपराध घटित नहीं होता उसके लिए रतलाम के एस.डी.एम लोगो को जेल की हवा खिला देते है और जब बात खुद के विभाग पर अपराध करने की आ जाए तो सारे कानून को ताक में रख दिया जाता है शायद यही ब्यूरोक्रेसी है पुलिस अधीक्षक और एसडीएम रतलाम को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस संविधानिक पद पर वहां नियुक्त है वहां भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखनीय "हम भारत के लोगों" के लिए समर्पित है जहां राज्य का यह कर्त्तव्य होता है की वह राज्य के लोगो के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे और जब परस्थित ही ऐसी हो की रक्षक ही भक्षक बन जाए तो यह नजारा आम हो जाता है इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा की लोकतांत्रिक व्यवस्था से राजशाही चलाई जा रही है। उक्त पूरे मामले की जानकारी देते हुए लीगल अधिवक्ता रिजवान खान द्वारा बताया गया है अब देखना है ये है की जिम्मेदार अधिकारी उक्त मामले पर कार्यवाही करने में कितना खरा उतरते है।

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