रतलाम कलेक्टर के आदेश पर उठे सवाल, पश्चिम बंगाल से आने वाले कारीगरों को "संदेह" की निगाह से देखना कितना न्यायसंगत : Ratlam Collector
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रतलाम कलेक्टर के आदेश पर उठे सवाल, पश्चिम बंगाल से आने वाले कारीगरों को "संदेह" की निगाह से देखना कितना न्यायसंगत!
रतलाम, मध्यप्रदेश। जिला प्रशासन रतलाम द्वारा जारी एक हालिया आदेश ने जिले में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि पश्चिम बंगाल से आने वाले सोना-चांदी के कारीगर यदि रतलाम में रोजगार प्राप्त करते हैं या किराए पर निवास करते हैं, तो उन्हें काम देने वाले जौहरी अथवा मकान मालिक उनकी जानकारी स्थानीय पुलिस थाने में अनिवार्य रूप से दर्ज कराएं।
प्रशासन का तर्क है कि ऐसे कारीगर अक्सर कुछ समय के लिए विश्वास अर्जित कर बहुमूल्य आभूषण लेकर फरार हो जाते हैं, और बाद में उनका पता लगाना अत्यंत कठिन हो जाता है। अतः पूर्व सूचना अनिवार्य है।
लेकिन सवाल यह है — क्या संदेह के आधार पर किसी राज्य विशेष के नागरिकों को चिन्हित करना लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप है!
कानूनी जानकारों की तीखी प्रतिक्रिया
विधिक जानकारों के अनुसार यह आदेश सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव निषेध), तथा अनुच्छेद 19(1)(d) और (e) — अर्थात् भारत में कहीं भी आने-जाने और बसने के अधिकार का उल्लंघन करता है।
यह आदेश एक राज्य विशेष के नागरिकों को संदेह के दायरे में लाकर न केवल उनके साथ भेदभाव करता है, बल्कि उन्हें सामाजिक रूप से अपमानित और कलंकित भी करता है — जो कि न केवल अवैध है बल्कि असंवेदनशील भी। यह आदेश सांप्रदायिक या क्षेत्रीय भेदभाव की भावना को बढ़ावा देने वाला प्रतीत होता है।
कलेक्टर कार्यालय की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल
जिला दण्डाधिकारी के इस आदेश ने कलेक्टर कार्यालय की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। क्या प्रशासन ने आदेश पारित करते समय संवैधानिक सीमाओं और नागरिकों के मूल अधिकारों पर विचार नहीं किया? क्या स्थानीय प्रशासन किसी विशेष क्षेत्र के लोगों को अपराध की पूर्व धारणा से देख रहा है?
कानून जानकारों का कहना है कि इस प्रकार की भाषा और नीति से शासन की निष्पक्षता, न्यायसंगत सोच और विवेकशीलता पर जनता का विश्वास डगमगाता है। यदि प्रशासन को सुरक्षा संबंधी चिंता है, तो समाधान सबके लिए समान और बिना भेदभाव के होना चाहिए।
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