नामली तहसील का रिश्वत कांड, "क्लर्क पकड़ाया, साहब मुस्कुराया!"
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नामली तहसील का रिश्वत कांड, "क्लर्क पकड़ाया, साहब मुस्कुराया!"
रतलाम, नामली तहसील न्यायालय का माहौल उस समय गर्मा गया जब लोकायुक्त पुलिस उज्जैन ने रिश्वतखोरी के आरोप में क्लर्क प्रकाश पलासिया को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। जनता में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि "अरे, छोटू फंसा है, मगर मोटू बचा है!"
घटना का पूरा ड्रामा:
ग्राम पंचेड़ के किसान गणपत पिता दयाराम हाड़ा ने अपनी जमीन नामांतरण विवाद में न्याय पाने की उम्मीद लेकर तहसील कार्यालय का दरवाजा खटखटाया। लेकिन न्याय से पहले उन्हें "मक्खन" यानी 50,000 रुपये की रिश्वत का बिल पकड़ाया गया। गणपत ने हिम्मत दिखाते हुए पहले 5,000 रुपये दिए और बाकी 15,000 की पहली किस्त लोकायुक्त की टीम के साथ मिलकर क्लर्क के हाथों तक पहुंचाई। इसके बाद जैसे ही नोट गिने गए, लोकायुक्त ने "धड़ाम" करते हुए क्लर्क को धर दबोचा।
लेकिन बड़े साहब?
इस पूरे घटनाक्रम में लोकायुक्त की कार्रवाई की सराहना हो रही है, लेकिन जनता का सवाल यह है कि जब भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं, तो बड़े साहब अब तक कैसे बच रहे हैं?
किसी ने मजाकिया अंदाज में कहा, "बड़े साहब तो हर बार ऐसा करिश्मा दिखाते हैं कि लोकायुक्त की टीम उनके आसपास भी नहीं पहुंच पाती। लगता है उनके पास भ्रष्टाचार विरोधी टीका लगा हुआ है!"
चाय की दुकानों पर चर्चा:
चाय की गुमटियों पर लोग चुटकी ले रहे हैं:
- "छोटा बाबू तो बकरा बन गया, मगर बड़े बाबू अभी भी 'शेर' बने बैठे हैं।"
- "जब तक साहब का ‘प्रोटेक्शन कवच’ है, क्लर्कों को बलि का बकरा बनाया जाएगा।"
- "ऐसा लगता है कि बड़े साहब की कुर्सी में 'भ्रष्टाचार विरोधी सॉफ्टवेयर' इनबिल्ट है।"
प्रशासन की चुप्पी:
इस पूरे मामले में जिले के प्रशासनिक प्रमुखों की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता का कहना है कि "तहसील में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है, लेकिन हर बार छोटे कर्मचारियों पर ही गाज क्यों गिरती है? क्या बड़े साहब कोई जादूगर हैं जो हर बार बच निकलते हैं?"
जनता का संदेश:
नामली की जनता अब जिले के अधिकारियों से जवाब चाहती है। उनका कहना है, "यदि न्यायालय में ही न्याय बिकने लगे, तो गरीब कहां जाएगा?"
तो साहब जी, अगली बार लोकायुक्त की नजरें आप पर भी रहेंगी। क्योंकि जनता सब देख रही है और अब चुप नहीं रहेगी!"