महाआंदोलन पर रोक : प्रशासन के आदेश में तर्क-विरोधाभास : लोकतंत्र पर खतरा?

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महाआंदोलन पर रोक : प्रशासन के आदेश में तर्क-विरोधाभास : लोकतंत्र पर खतरा?
Maha Aandolan BAP Party MLA Kamleshwar Dodiyaar

"महाआंदोलन पर रोक: प्रशासन के आदेश में तर्क-विरोधाभास, लोकतंत्र पर खतरा?"

रतलाम, मध्य प्रदेश। सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार द्वारा प्रस्तावित महाआंदोलन कार्यक्रम को जिला प्रशासन ने अस्वीकार कर दिया है। कलेक्टर द्वारा जारी आदेश में कानून-व्यवस्था और अप्रिय घटना की संभावना का हवाला दिया गया है। लेकिन इस आदेश में मौजूद तर्क-विरोधाभास ने प्रशासन की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।  

आदेश में विरोधाभासी तर्क

कलेक्टर के आदेश के दो बिंदु विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं:  

1. आदेश में कहा गया कि:  

   "आपके द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रम जिसकी आपके द्वारा कोई पूर्वानुमति नहीं ली गई है।" 

2. फिर इसी आदेश में यह भी कहा गया कि:  

   "आपके स्वयं के द्वारा व्यक्त अप्रिय घटना की संभावना को देखते हुए दिनांक 11.12.2024 को आपके द्वारा आहूत महाआंदोलन कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जाती है।"  

यह विरोधाभास यह सवाल उठाता है कि जब अनुमति के लिए कोई आवेदन ही नहीं दिया गया, तो अनुमति रद्द करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या प्रशासन ने पहले से ही कार्यक्रम को रोकने का मन बना लिया था?  

विधायक की जनहितकारी मांगें

विधायक कमलेश्वर डोडियार ने महाआंदोलन के लिए सुरक्षा व्यवस्था, बॉडी कैमरों से रिकॉर्डिंग, और बैरिकेडिंग जैसी बुनियादी और आवश्यक मांगें की थीं। ये मांगें शांति और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए थीं ताकि किसी भी अप्रिय घटना की संभावना को रोका जा सके। बावजूद इसके, प्रशासन ने कार्यक्रम पर रोक लगाते हुए मानो लोकतांत्रिक विरोध को ही अपराध करार दे दिया।  

‘अप्रिय घटना की संभावना’ – प्रशासन की दुविधा या मनमानी?

विधायक ने खुद अप्रिय घटना की आशंका जताते हुए पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की मांग की। लेकिन प्रशासन ने बिना ठोस आधार के अनुमति रद्द कर दी। यह कदम दर्शाता है कि प्रशासन को जनप्रतिनिधियों और जनता के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर भरोसा नहीं है। क्या प्रशासन की यह दलील संभावनाओं के नाम पर जनभावनाओं को दबाने की कोशिश है?  

संवैधानिक अधिकारों का हनन

संविधान का अनुच्छेद 19(1)(b) शांतिपूर्ण सभा और प्रदर्शन करने का अधिकार देता है। कलेक्टर का यह आदेश इस अधिकार का उल्लंघन करता प्रतीत होता है। लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन एक वैध प्रक्रिया है, लेकिन प्रशासनिक आदेशों के माध्यम से इसे रोकना लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।  

‘अनुमति की राजनीति’ या प्रशासनिक निष्पक्षता?  

यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या इस आदेश के पीछे राजनीतिक दबाव है? क्या प्रशासन निष्पक्षता से काम कर रहा है या सत्ताधारी दल के इशारों पर जनप्रतिनिधियों को निशाना बनाया जा रहा है? लोकतंत्र में प्रशासन का दायित्व है कि वह जनता और जनप्रतिनिधियों के अधिकारों का सम्मान करे, न कि उन्हें मनमाने आदेशों से रोके।  

जनता की आवाज दबाने का प्रयास

महाआंदोलन पर रोक लगाना, कार्यक्रम के पीछे के जनहित के मुद्दों को भी अनदेखा करना है। लोकतंत्र में विरोध और अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचलना असहमति की आवाज को दबाने जैसा है। यह आदेश प्रशासन के अविवेकपूर्ण और जनविरोधी रवैये को उजागर करता है।  

कलेक्टर का यह आदेश प्रशासनिक तर्कहीनता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति असंवेदनशीलता का उदाहरण है। यदि प्रशासन इसी तरह जनता की आवाज को दबाता रहा, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर करेगा। लोकतंत्र में प्रशासन को संविधान और कानून के तहत पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ कार्य करना चाहिए, न कि संभावनाओं के नाम पर जनभावनाओं को दबाना चाहिए।  

अब सवाल यह है कि प्रशासन इस आलोचना को सुधार का अवसर मानेगा या फिर लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की परंपरा को जारी रखेगा?

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