रतलाम कलेक्टर के प्रतिबंधात्मक आदेश पर उठे सवाल: क्या मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है ?
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रतलाम कलेक्टर के प्रतिबंधात्मक आदेश पर उठे सवाल: क्या मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है ?
शासकीय कार्य बनाम जन अधिकार, प्रशासनिक आदेश की समीक्षा जरूरी
रतलाम। 07 दिसंबर 2024: जिला कलेक्टर द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत कार्यालय कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के 100 मीटर के दायरे में धरना-प्रदर्शन और ध्वनि विस्तारक यंत्रों के उपयोग पर दो माह के लिए प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया है। इस आदेश का आधार शासकीय कार्यों में बाधा और लोक व्यवस्था बनाए रखना बताया गया है। लेकिन क्या यह आदेश संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है? कई कानूनी और सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस आदेश में कई खामियां हैं।
क्या है आदेश का सार?
जिला कलेक्टर द्वारा जारी आदेश के अनुसार, अगले दो महीनों तक कोई भी दल, संगठन या समूह कलेक्टर कार्यालय और पुलिस अधीक्षक कार्यालय के आसपास 100 मीटर की परिधि में धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकता, न ही ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग कर सकता है। आदेश का उल्लंघन करने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के तहत दंडनीय अपराध का प्रावधान है।
विशेषज्ञों की राय: आदेश में क्या हैं खामियां ?
1. संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन:
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(1)(b) के तहत नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने का अधिकार है।
इस आदेश में बिना किसी अपवाद के सभी प्रकार के धरना-प्रदर्शन पर रोक लगाई गई है, जो कि मौलिक अधिकारों का सीधा हनन करता है।
2. तत्काल खतरे का उल्लेख नहीं:
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत ऐसा प्रतिबंध तब लगाया जा सकता है जब कोई तत्काल खतरा या आपात स्थिति हो। आदेश में किसी विशिष्ट आपात स्थिति का उल्लेख नहीं है।
3. अनुपातहीन प्रतिबंध:
पूर्ण प्रतिबंध के बजाय, प्रशासन नियंत्रित प्रदर्शन की अनुमति दे सकता था। जैसे कि, शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता या ध्वनि की सीमा तय की जा सकती थी।
4. लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल:
विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा हैं। ऐसे प्रतिबंध से नागरिकों की आवाज दबाने का संदेश जाता है।
क्या है समाधान?
विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रशासन को चाहिए कि:
- प्रतिबंध को विशिष्ट परिस्थितियों तक सीमित रखा जाए।
- प्रदर्शन की अनुमति के लिए व्यवस्थित प्रक्रिया बनाई जाए।
- जनहित और शासकीय कार्यों में संतुलन स्थापित हो।
सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया :
स्थानीय संगठनों और जन प्रतिनिधियों ने भी इस आदेश पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन का अधिकार छीना नहीं जा सकता। उन्होंने प्रशासन से आदेश को तुरंत संशोधित करने की मांग की है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन इस आदेश की समीक्षा करेगा या फिर इसे जनहित में संशोधित किया जाएगा।
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