मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना के बावजूद भी जनता को सेप्टीटैंक की गंधयुक्त पानी दे रहा निगम “सुशासन( Vajpayee Doctrine of good governance)”, न्याय में देरी, अन्याय है (Justice delayed is justice denied), के सिधान्तो के साथ-साथ मौलिक अधिकारों का हो रहा हनन
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मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना के बावजूद भी जनता को सेप्टीटैंक की गंधयुक्त पानी दे रहा निगम “सुशासन( Vajpayee Doctrine of good governance)”, न्याय में देरी, अन्याय है (Justice delayed is justice denied), के सिधान्तो के साथ-साथ मौलिक अधिकारों का हो रहा हनन
रतलाम@हमारे अधिकार न्यूज, एडवोकेट रिजवान खान, प्रदेश के शहरों में पेयजल उपलब्ध कराने के लिये मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना वर्ष 2012 से प्रांरभ की गई है। योजना के अंतर्गत 50,000 से अधिक जनसंख्या वाले शहरों के लिये परियोजना लागत का 20 प्रतिशत एवं 50,000 से कम जनसंख्या वाले शहरों के लिये परियोजना लागत का 30 प्रतिशत राज्य शासन द्वारा अनुदान दिया जाता है। शेष 80 प्रतिशत एवं 70 प्रतिशत राशि की पूर्ति नगरीय निकायों द्वारा ऋण लेकर की जाती है, जिसमें ऋण का 75 प्रतिशत राज्य शासन द्वारा एवं 25 प्रतिशत नगरीय निकाय द्वारा भुगतान किये जाने की व्यवस्था है। राज्य शासन द्वारा इतनी सहायता करने के बावजूद भी नगरीय निकाय अगर अपने कर्तव्यों का निर्वहन ना करे तो सरकार और प्रशासन की छवि खराब होती है l
इसी तरह सरकार और प्रशासन की छवि खराब कर रही है रतलाम की नगर पालिका, रतलाम में राजेश्वर नगर के लोग पिछले एक साल सेप्टीटैंक की गंधयुक्त पेयजल से परेशान हो रहे है जिनके द्वारा कई बार निगम को शिकायत की गई लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई हद तो तब हो गई जब इस संबंध में प्रदेश की नोडल एजेंसी C.M Helpline पर शिकायत की गई जिसे सुशासन को बनाए रखने का जिम्मा दिया गया है उसी में शिकायत क्रमांक 20512592 को पूरे 6 महीने होने को आए है आखिर क्या कारण है की आज तक शिकायत का कोई निराकरण नहीं हुआ यह प्रदेश के मुख्या द्वारा चलाई जा रही योजना का मजाक नहीं है क्या, जहा सीएम हेल्पलाइन के जारी परिपत्र क्रमांक 710/PSM/2014/61 दिनांक 30/07/2014 में शिकायत के निराकरण की अधिकतम समय अवधि लगभग 45 दिन की है, लेकिन यहां 165 दिनों तक एक शिकायत का कोई निराकरण नहीं होता है,
C.M Helpline का मुख्य उद्देश्य सुशासन को बनाए रखना है जो की “Vajpayee Doctrine of good governance” के सिधांत पर आधारित है
अब सवाल यह है की जिसको जिम्मेदारी “ सुशासन ” बनाए रखने की दी है वहीं यदि न्याय नहीं मिलेगा और जिसकी स्थापना ही “ सुशासन ” के लिए की गई हो वहीँ सुनवाई नही हो तो, तकलीफ होती है न्याय में देरी, अन्याय है (Justice delayed is justice denied)
भारतीय संविधान में 74वें संविधान संशोधन के परिपालन में नगरीय पेयजल की व्यवस्था लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा स्थायी निकायों को सौंपी जा चुकी है। शुद्ध पेयजल की आपूर्ति नगर निगम का वैधानिक कर्तव्य है और प्रत्येक नागरिक को शुद्ध पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करना नगरपालिका के अधिकारियों का कर्तव्य,
इन सब के बावजूद निगम के अधिकारियो द्वारा अपने सिविल सेवा आचरण नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है जिसकी वजह से कई मौलिक अधिकारों के हनन के साथ साथ कानूनों का भी उलंघन कर एक अपराध करित किया जा रहा है |
कई संविधानिक मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कई कानूनों का उल्लंघन कर रहा है निगम:-
भारतीय सविधान के मौलिक अधिकार
- अनुच्छेद 14 के अनुसार राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा ।
- अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा ।
3.अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा प्रस्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।
भारतीय सविधान के अनुछेद 14,15,21 के आधार पर अनुछेद 243 के अंतर्गत नगरपालिकाओ का गठन किया गया और उसी के अनुछेद 243-बी के अंतर्गत नगरपालिकाओ का यहा कर्त्तव्य बयाता गया की बारहवी अनुसूची में दी हुई मुलभुत सुविधाओ के लिए कार्य करे और जनता को उसका लाभ पहुंचाए
कई कानून का उलंघन :-
1.जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
2.सुखभोग अधिनियम 1882 की धारा 7 का उलंघन
3.पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम का विस्तार जल की गुणवत्ता और जल प्रदूषण के नियंत्रण तक है। अधिनियम की धारा 2 (ए) पर्यावरण को परिभाषित करती है जिसमें पानी और मनुष्यों, अन्य जीवित प्राणियों, पौधों, सूक्ष्मजीवों और संपत्ति के बीच मौजूद अंतर्संबंध शामिल हैं।
4.मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियम 1965,
5.मध्य प्रदेश लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी अधिनियम 2010, धारा 3 की सेवा क्रमांक 5.4
- मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1956
7.खाद सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006,
8.नगर पालिका द्वारा जल कर लेने के बावजूद भी लोगो को साफ पानी नही देना अपने आप में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का उलंघन है
इसी तरह कई और कानून है जिन्हे अनदेखा कर नगर पालिका निगम रतलाम कार्य कर रही है | सरकार के कई करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी लोगों को मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है । साफ पिने का पानी एक व्यक्ति के जीने का मुलभुत आधार है जनता के मौलिक अधिकारों का हनन रतलाम नगर पालिका द्वारा किया जा रहा है लेकिन सरकार कुछ नहीं कर रही है भारत में, स्वच्छ पेयजल तक पहुंच का संवैधानिक अधिकार भोजन के अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार से लिया जा सकता है, इन सभी को जीवन के अधिकार के व्यापक शीर्षक के तहत संरक्षित किया गया है, संविधान का अनुच्छेद 21 जिसके तहत यह गारंटी दी गई है। अंतर्राष्ट्रीय संधियों की विस्तृत समीक्षा से पता चलता है कि भारत के संविधान के प्रारूपकारों ने स्पष्ट रूप से पानी को एक मौलिक संसाधन माना है।
यह माना जाता है कि बुनियादी स्वच्छ जल तक पहुंच की गारंटी बुनियादी मानव अधिकार है अनुच्छेद 21 के अतिरिक्त,अनुच्छेद 39 (बी) में यह आदेश दिया गया है कि 'राज्य, विशेष रूप से, अपनी नीति को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करेगा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए कि यह सामान्य भलाई के लिए उपयोग में लाया जा सके अनुच्छेद 47 पोषण के स्तर और जीवन स्तर को बढ़ाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य के कर्तव्य का सुझाव देता है।
राज्य अपने लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को बढ़ाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों के रूप में मानेगा और इसी प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) में अपने निर्णय में बताया है की "जीने के अधिकार में जीवन के पूर्ण आनंद के लिए प्रदूषण मुक्त पानी और हवा का आनंद लेने का अधिकार शामिल है। इसी के अंतर्गत एक नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 32 का सहारा लेने का अधिकार है।
दिल्ली जल आपूर्ति और सीवेज बनाम हरियाणा राज्य (1996)"सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि "पानी प्रकृति का एक उपहार है। मानव को इस इनाम को अभिशाप, एक उत्पीड़न में बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
पी.आर सुभाष चंद्रन बनाम आंध्र प्रदेश सरकार और अन्य (2001) इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "नागरिकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राज्य जिम्मेदार है।" 'पानी के अधिकार' की रक्षा के लिए भारत में जल और जल आधारित संसाधनों के संबंध में अनेक कानून बनाए गए हैं।
स्वच्छ पेयजल के बारे में पॉलिसी भी भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा बनाई गई है इन सब के बावजूद नगर पालिका निगम रतलाम क्या अपने कर्तव्यों का पालन कर रही है अगर पालन नहीं कर रही है तो क्या यहा नही माना जाए की नगर पालिका का यह कृत्य भारतीय दण्ड सहित की धारा 2 के अंतर्गत एक Omission है जो एक अपराध है।
न्याय में देरी, अन्याय है (Justice delayed is justice denied)